Wednesday, December 31, 2014

आने वाले साल का हर दिन हो शुभ !



मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल गया ये साल भी
पिछले साल की तरह,
वही तल्खियाँ, रुसवाइयाँ
आरोप, प्रत्यारोप,बिलबिलाते दिन
लिजलिजाती रातें, दर्द, कराह
दे गया सौगात में

सोचा था पिछले साल भी
होगा खुशहाल, बेमिशाल
लाजवाब आने वाला साल
,
भरेगा खुशियों से दामन
महकेगा फूलों से घर आँगन
खुले केशों से बूँदें टपकेंगी
हर कदम मोती सी बिखरेंगी
देगी तुलसी के चौरा में पानी
बन के रहेगी वो राजा की रानी,

हो गया फिर से आत्मा का चीरहरण
केश तो खुले पर द्रोपदी की तरह
कराह, चीख से भर गया घर आँगन
अपमान की ज्वाला से दहकने लगा दामन
भर गया रगों में नफरत का जहर
हाहाकार कर उठा अंतर्मन
याद कर वो बरपा हुआ कहर,

लो आ गया फिर से नया साल
जागी है फिर दिल में आस
लाएगा खुशियाँ अपार
मिटेगा मन से संताप,
दहकाए न कलुषित शब्दों का ताप
दे ये नया साल खुशियों की सौगात,

हो
, माँ शारदे की अनुकम्पा
बोल उठें शब्द बेशुमार
मेघ घनन-घन बरसे
कल-कल सरिता बहे
धरती धनी चूनर ओढ़े 
फिर,
नाच उठे मन मयूर
शब्द झरें बन कर पुष्प
गाये पपीहा मंगल गीत
आने वाले साल का
हर दिन हो शुभ !!!
**************
                    आप सभी को नव वर्ष की अनंत शुभकामनाएँ !



Tuesday, December 30, 2014

आधी आबादी के अच्छे दिन ....आखिर कब ?


ये हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है ? कैसी शिक्षा ? कैसा विकाश और कैसे अच्छे दिन हैं ये ? जहाँ एक स्त्री सुरक्षित नहीं !!
आये दिन बलात्कार और तेज़ाब फैंकने की ख़बरें सुन कर और अखबारों में पढ़ कर मन बहुत आहत होता है | एक स्त्री
, जो जन्म देती है पुरुष को, उसी पुरुष द्वारा बर्बरता की शिकार होती है | कभी तेज़ाब फैंक कर, कभी सामूहिक बलात्कार तो कभी घरेलू हिंसा द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता है | जिस घर समाज या राष्ट्र में स्त्री का सम्मान नहीं वो क्या उत्थान करेगा ? वो तो पतन की दिशा में जा रहा है |
जिस देश में कन्याएं पूजी जातीं हैं उसी देश में छोटी-छोटी कन्याओं के साथ जघन्य अपराध हो रहा है | कैसे दोयम दर्जे के विचार हैं ? कैसा दोहरा व्यक्तित्व है, दोहरा चरित्र है ?...धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो नारी देह को सिर्फ भोगना चाहते हैं, चाहे वो तीन वर्ष की बच्ची हो, बीस वर्ष की युवा या पैंतालीस वर्ष की पौढ; इन्हें तो बस् एक स्त्री देह चाहिए बस् !!
जब व्यास पीठ पर बैठे धर्म के रक्षक ये कहते हैं कि “जब आप अपनी संपत्ति, सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, रूपये आदि अपनी तिजोरी में रखते हैं तो बेटियों को सड़क पर क्यों छोड़ देते हैं ? उन्हें रात में बाहर क्यों निकलने देते हैं ?” ऐसे वक्तव्यों से उन मानसिक रोगियों के हौसले बुलंद होते हैं, जो स्त्री देह को मात्र भोग की वस्तु समझते हैं |
पति को परमेश्वर मानने, उनकी हर आज्ञा का पालन करने और तमाम उम्र व्रत उपवास की सीख स्त्री को देने वाले ये धर्मरक्षक क्या उन अमानुषिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा नही दे रहे जो सारे नही तो बहुत से पतियों में विद्यमान है ? जिसके कारण बहुत सी स्त्रियाँ या तो आत्महत्या कर लेती हैं या घुट-घुट कर जीने को मजबूर रहती हैं |
मंचों से जो मठाधीश सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों को ही तमाम उपदेश देते हैं वो समाज के पुरुषों को कोई उपदेश क्यों नही देते ? उन्हें क्यों नही कहते कि बेटियाँ घर में रहें या बाहर उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखें |
क्या बेटियाँ कोई संपत्ति या चीज हैं, जो हम तिजोरी में बंद कर दे उन्हें, घर से बाहर ही ना निकलने दें ?
जब सार्वजनिक मंचों से राजनेता ये कहते हैं कि “हो जाती है लड़कों से गलती कभी कभी” तो क्या असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद नही होते ? इस पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री आखिर कब तक शोषित रहेगीं ?  
दिल्ली वाली घटना हो या लखनऊ वाली, दोनो घटनाओं के बारे में लोगों ने यही कहा कि
एक लड़के के साथ रात में क्यों गई ? आये दिन ये घटनाएँ होती रहती हैं हर बार एक ही बात, अकेले क्यों गई ? रात को क्यों निकली ?
जब भी इस विषय पर चर्चा होती है
; तो पुरुष वर्ग स्त्री को उसके पहनावे और उसके चरित्र पर उंगुली उठाने लगता है, वो रात को अकेले क्यों गई या अपने साथ किसी पुरुष को क्यों नही ले कर गई आदि आदि बातों की शिकायत करता हैं |
हम पूछते हैं, छोटी-छोटी बच्चियों के साथ क्यों बलात्कार होता है ? उन्हें हम कैसे कपड़े पहनाएँ ? बताए कोई |
क्या महिलाएँ रात में अपनी ही गली, मुहल्ले, शहर और देश में अकेले नही निकल सकतीं, या दिन में भी क्या वो इन सब जगहों पर सुरक्षित हैं ??
क्या आधी आबादी को कभी भी सुरक्षा मिल पाएगी ??
क्या कभी वो अपने को सुरक्षित  महसूस कर पाएंगी ??
क्या कभी उनके लिए भी अच्छे दिन आएंगे ??
बहुत से प्रश्न हैं जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं | कौन देगा इन सवालों के जवाब ? कौन जिम्मेदार है इन सब घटनाओं का ? क़ानून, राजनेता, बाबाजी लोग या हम खुद ?


सोचना होगा, आत्म मंथन करना होगा कि कहीं ना कहीं इन सब घटनाओं के लिए हम भी जिम्मेदार हैं, शुरुआत हमें ही करनी होगी अपने-अपने परिवार से | हम बेटियों को शुरू से ही हजार नियम, कायदा-क़ानून, रीति-रिवाज, समझाने लगते हैं, मैं ये नही कहती कि ये हम सब गलत करते हैं; पर क्या अपने बेटों को भी कुछ समझाते हैं ? बेटी पर हर तरह की पाबंदी, पर क्या यही सब पाबंदियां बेटे पर भी लगाते हैं हम ?

क्यों ???
आखिर संतान तो दोनों हमारी ही हैं, तो दोनों के पालन-पोषण में इतना अंतर क्यों ? सोचना होगा | हमें अपने बेटों को स्त्री का सम्मान करना सिखाना होगा इसके लिए हमारे समाज के पुरुष वर्ग को आगे आना होगा | जिन घरों में पुरुष स्त्रियों का सम्मान नही करते, उनके साथ घरेलू हिंसा करते हैं, उन्हें माँ-बहन की गालियाँ देते हैं, उन्हें बात-बात पर प्रताड़ित करते हैं, घर हो या सार्वजनीन स्थल कहीं भी अपने पति होने का दावा ठोक देते हैं उन्हें अपमानित करके, उन घरों के बेटों को ये सब विरासत में मिल जाता है और इस परम्परा को वो अपनी अगली पीढ़ी को दे देते है और वो अगली, इस तरह ये पीढ़ी दर पीढ़ी ‘खाज’ की तरह बढ़ता ही रहता है, इस तरह तो ये बुराई कभी खत्म ही नही होगी ! इसे रोकना होगा | जब घर के पुरुष अपने घर की स्त्रियों का सम्मान करेंगे तभी वो दूसरों की बहन बेटियों का भी सम्मान कर पायेंगे और अपनी अगली पीढ़ी को भी ये बात सिखा पायेंगे |
हम (आधी आबादी) राजनेताओं से पूछते हैं कि भगवान ना करें कि ऐसी ही दुर्घटना उनकी बहु-बेटियों के साथ हो तब भी क्या वो यही कहेंगे कि
–“हो जाती है लड़को से गलती कभ-कभी ?
हम उन समाज के ठेकेदारों से पूछना चाहते हैं कि क्या ऐसी बर्बरता उनकी बहू-बेटियों के साथ हो तब भी वो यही कहेंगे कि
उस स्त्री का चरित्र ठीक नही था या उसने भड़काऊ कपड़े पहने थे, तभी ऐसी घटना घटी !!
सार्वजनिक मंचों या व्यास पीठ से कुछ ऐसा बोला जाना चाहिए कि समाज की बुराइयां खत्म हों, स्त्रियाँ निडर हो कर कहीं भी आ जा सकें | अपने घर के भीतर या बाहर निडर हो कर अपने ऊपर हो रहे अमानुषिक वर्ताव का विरोध कर सके, ये उनका भी दायित्व बनता है कि कुछ ऐसा बोलें कि अपराधी प्रवृत्ती वाले लोग भयभीत हों, कुछ भी ऐसा ना कहाँ जाय जिससे कि उनका हौसला बढ़े|

सबसे पहले समाज को स्त्रियों के प्रति अपनी सोच और नजरिया बदलना होगा | राजनीतिक स्तर के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी सुधार की जरुरत है | ऐसे लोगों (बलात्कारियों और तेज़ाब फैंकने वालों) का पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक वहिष्कार होना चाहिए जिससे उन्हें भय हो कि उन्हें क़ानून से बचाने वाला कोई नही और किसी तरह अगर क़ानून से बच भी गया तो परिवार और समाज उसे नही अपनाएगा, ये भय होना बहुत जरूरी है |
क़ानून में भी ऐसे अपराधी को जल्द से जल्द और कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए; स्वच्छ भारत के साथ अपराध मुक्त भारत हो, हम यही उम्मीद करते हैं; पर काश .........ऐसा हो !!!!

छन्न पकैया छन्न पकैया, ये कैसी आजादी |
सिसक-सिसक कर रोती अब भी, क्यूँ आधी आबादी ||

मीना पाठक

(पिछले वर्ष के कुछ तीखे शब्द और धटनाओं पर आधारित लेख | ईश्वर करें इस वर्ष ये घटनाएं ना दोहराई जाय)
 



Friday, December 26, 2014

स्त्री !

बसंती हवा  
गुलाबी शरद
गुनगुनी धूप सी,
शीतल जल 
पवन में सुगंध
कोयल के कूक सी,
कमलदल
सतरंगी रश्मियां 
शशि किरन सी,
बौराई भँवर
कल-कल सरिता
अटल  शिखर सी,
ऊर्वशी
शकुंतला
यशोधरा सी, 
स्त्री !!
जननी, तरणी,
संरक्षणी
सम्पूर्ण प्रकृति की संचालिनी
फिर भी !!
अबला, उपेक्षिता,
तिरष्कृता,
पराश्रिता सी
क्यूँ ??

Saturday, December 13, 2014

पापा की याद

"पापा आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर" अनन्या अपने पापा की उंगुली थामे मचल कर बोली
"मैं तारों के पास गया था, अब वही मेरा घर है बेटा" साथ चलते हुए पापा बोले
"तो मुझे भी ले चलो न पापा तारो के पास !" पापा की तरफ़ देख कर बोली अनन्या
"नहीं नहीं..तुम्हें यहीं रह कर तारा की तरह चमकना है" पापा ने कहा
"पर पापा मैं आप के बिना नही रह सकती, मुझे ले चलो अपने साथ या आप ही आ जाओ यहाँ"
"दोनों ही संभव नही है बेटा..पर तुम जब भी मुझे याद करोगी मुझे अपने पास ही पाओगी,कभी हिम्मत मत हारना, उम्मीद का दामन कभी ना छोड़ना,खूब मन लगा कर पढ़ना, आसमां की बुलंदियों को छूना और धुवतारा बन कर चमकना बेटा, मैं हर पल तुम्हारे पास हूँ पर तुम्हारे साथ नही रह सकता |"
अचानक अनन्या की आँख खुल गई, सपना टूट गया, पापा उससे उंगुली छुडा कर जा चुके थे, उसकी आँखों में अनायास ही दो बूँद आँसू लुढक पड़े | आज एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उसका इंटरव्यू था और रात उसे पापा की बहुत याद आ रही थी  |

मीना पाठक



Tuesday, December 9, 2014

यात्रा अंतर्मन की


सुरो आज अपने आप को रुई से भी हल्का महसूस कर रही है, एक अजीब सी खुशी और ऊर्जा का एहसास हो रहा है उसे जैसे अपनी जिंदगी की मंजिल पा गई हो | वो उड़ रही है इधर से उधर, अब उस पर कोई रोक-टोक या पाबंदी नही, वो अब कहीं भी आ जा सकती है, उड़-उड़ कर वो अपने घर मे मंडरा रही है ऐसा करने मे उसे बहुत आनंद आ रहा है |
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसके पतिदेव उसे हिला कर जागा रहे हैं पर उसके शरीर मे कोई हलचल नही हो रही और अचानक ही घर मे कोहराम मच गया | बहुएं उसे जगाने का प्रयास कर रहीं हैं पर सुरो की नींद नही खुल रही | धीरे-धीरे घर मे भीड़ जुटने लगी, सुरो अपनी बहुओं को समझा रही है पर वो जैसे उनकी बात ही नहीं सुन पा रहीं |
पतिदेव को भी कह रही पर वो भी उसकी बात नही सुन रहे | सुरो परेशान है, वो तो सब को देख रही हैं, सुन रही है पर उनकी बात कोई नहीं सुन पा रहा है | क्या हो गया है सब को ? मेरा शरीर क्यूँ पड़ा है इस तरह ? वो कुछ भी समझ नही पा रही है | धीरे धीरे उनकी सब सहेलियां भी आ चुकी है, सब रो रहीं हैं | घर के बाहर पुरुषों की भीड़ लग गई और अन्दर महिलाओं की |
सुरो का शरीर बेड से उतार कर बहार जमीन पर एक चादर बिछा कर लिटा दिया गया है सभी वही बैठ गये
उसने देखा की उसकी सबसे प्यारी सखी रानी फूट फूट कर रो रही है | सब का रोना देख कर सुरो का अंतर्मन वेदना से दहल रहा था और वो किसी को भी समझाने मे असमर्थ थी | वो ये सोच कर परेशान थी कि उनका शरीर इस तरह से शांत क्यूँ है वो तो यहीं हैं फिर भी...........
पतिदेव भी रो-रो कर बेकल हो रहे हैं | सभी उन्हें समझाने मे लगे हैं, पर उनका रोना बंद नही हो रहा है | महिलाएं एक दूसरे से चर्चा कर रहीं हैं, सभी को उसके द्वारा किये गये कोई ना कोई कार्य याद आ रहा है, उसके हंसमुख, मिलनसार स्वभाव की चर्चा सभी कर रहीं हैं | धीरे-धीरे दोपहर हो गई कोई कब तक बैठा रहेगा, अपनी-अपनी संवेदनाएं दे कर सभी लोग  घर चले गये अब सिर्फ घर के ही लोग बचे हैं | सुरो के शरीर पास घूपबत्ती जला दी गई है, बहुए रो-रो कर बेदम हो कर वहीं बैठीं हैं | सुरो का बहुओं से बहुत लगाव था इन्हें रोता हुआ देख कर वो बहुत दुखी हो रही हैं | उन्होने ने देखा कि पतिदेव किसी से कह रहे हैं--
कल जायेगी, बेटों के आने के बाद |
शाम होते ही कुछ लोग गाड़ी से बर्फ की बड़ी सी सिल्ली ले कर आए हैं | अब सुरो का शरीर बर्फ के सख्त गद्दे पर लिटा दिया गया है |
धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार पहुँच रहे हैं, हर एक के आने पर एक बार फिर से हृदयविदारक दृश्य देख रही है सुरो | रात मे सास ससुर रिश्तेदारों से बात कर रहे हैं बहुएं और पतिदेव निढाल हैं | आज पहली बार अपने सास-ससुर के मुंह से अपनी तारीफ़ सुन कर बहुत गदगद है सुरो | वो तो दुनिया की सबसे अच्छी बहू थी अपने सास-ससुर की निगाह मे | बीच-बीच मे पतिदेव भी उसके त्याग और संघर्ष को बता रहे हैं |
जीवन के इस मोड़ पर क्यूँ छोड़ कर चली गई ये कह कर रो पड़ते हैं |
सुरो सोचने लगी, ये लोग जो आज बोल रहे हैं वो सच है या ये लोग जो कल तक बोलते थे वो सच था ??
सुरो कराह उठी इतने दोहरे व्यक्तित्व के कैसे हो सकते हैं ये लोग ?
वो शायद अब जीवित नही हैं, कई बार सुना था कि मरने के बाद आत्मा शारीर के आस-पास ही मंडराती रहती है, तो क्या वो ....... ????
अब सुरो समझ गई थी कि उनकी आत्मा शरीर छोड़ चुकी है | रातभर वो वहीं अपने बहुओं के पास बैठी रही और अपनी तारीफ़ सुनती रही पाति और सास ससुर के मुख से, पर हर तारीफ़ के बोल उसकी आत्मा कचोट रहे थे | अपने बेटे को सीने से लगाये बैठे थे वे लोग, कभी यही लोग शरीर भीतर मेरी आत्मा कुचलते रहे और आज भी वही कर रहे हैं | सुरो तो कब का मर जाना चाहती थी पर अपने बच्चों के लिए जीती रही और अब, जब अपने पोते-पोतियों के साथ हँसना चाहती थी, खेलना चाहती थी, तब आत्मा ने शरीर छोड़ दिया, ना तब कुछ वश मे था और ना ही कुछ आज उसके वश मे है | पति को रोते हुए देख कर कभी तो उसे हँसी आ रही थी तो कभी उसका दिल नफरत से भर रहा था | इसी आदमी ने जानवरों से भी बद्तर वर्ताव किया था, मेरे शरीर को कितनी बार काले नीले रंगों से भर दिया था, उसकी पीड़ा आज भी महसूस करती हूँ और आज सब को दिखाने के लिए रोना पीटना ...... हुंह ,,,
नफरत है तुम से बुदबुदाई सुरो | पर उनकी आवाज कोई नही सुन पाया |
सुबह हो गई है सुरो ने देखा कि सामने वाली भाभी जग मे चाय ले कर आयीं हैं उन्होंने सब को जबरजस्ती चाय पिलाई और थोड़ी देर बैठ कर चली गयीं | करीब आधे घंटे बाद एक कार आ कर रुकी, दरवाजा खुला और बेटे दौड़ कर माँ के शरीर से लिपट गये एक बार फिर से दृष्य हृदयविदारक हो गया ..रोने की आवाज सुन कर फिर से भीड़ जुटने लगी, कई लोगों ने बेटों को मेरे शरीर से अलग किया, पर वो किसी से भी सम्भल नहीं पा रहे थे, अपने-अपने पति को यूँ रोते देख कर बहुएं भी फिर से बिलख कर रो पड़ीं | सुरो तड़प रही थी बेटों को हृदय से लगाने के लिए पर कुछ भी नहीं कर पा रही थी, बेटों को बिलखता देख हर एक के आँख मे आँसू हैं,
अब जाने की तैयारी हो रही है बाहर कुछ लोग बांस का बिछौना तैयार कर रहे है....रानी बहुओं को समझती जा रही है और बहुएं अपनी सासू माँ को विदा करने के लिए तैयार कर रहीं हैं |
 ऐसा लग रहा है जैसे सुरो सज-धज कर सो रही हो ..लाल जरीवाली साड़ी जो बड़े बेटे ने अपनी पहली तनख्वाह पर खरीद कर दी थी सुरो को, उसे याद आ रहा है, उस दिन वो कितनी खुश हुई थी बेटे से इतनी महँगी साड़ी पा कर पर पहनने मे हिचकती थी क्यों कि साड़ी सुर्ख लाल रंग की थी इस लिए उसे सम्भाल कर रख दी थी | वही साड़ी बहुओं ने पहना दी थी, लाल बिन्दी, लाल चूड़ियाँ, महावर नये बिछुए सब पहनने के बाद सिन्दूर लगाने के लिए पतिदेव को लाया गया उनके कुछ मित्रों ने उन्हें सम्भाल रखा था | बहू ने सिन्होरा खोल कर आगे बढ़ा दिया पतिदेव ने दुबारा सुरो की मांग भर दी और सुरो सोचने लगी कि ये सिन्दूर किसने बनाया ? ये एक चुटकी सिन्दूर किसी के जीवन का फैसला कर देता है, फैसला अच्छा हुआ तो जीवन सफल और गलत हुआ तो जीवन को बोझ की तरह ढोना पड़ता है अपने ही कन्धों पर |
अचनक कुछ लोगों ने झट से सुरो के शरीर को उठा कर बांस के बिछौने पर लिटा दिया, एक बहू दौड़ कर भीतर से चश्मा उठा लाई....सुरो को चश्मा लगा कर बोली --
मम्मी चश्मे के बिना नहीं रह पातीं सभी लोग फूट फूट कर रो पड़े ..हिचकियों और रोने-बिलखने की आवाज से वातावरण ग़मगीन हो गया था..झट से दोनों बेटों और पतिदेव ने बांस का बिछौना उठा लिया और चल पड़े, सब कुछ पीछे रह गया |
कुछ महिलाएँ बतिया रहीं थीं
कितनी भागमान थी सुरो, पति और बेटों के कंधे पर चढ़ कर विदा हो रही है |
सुरो सब कुछ देख-सुन रही है | उसे जहाँ ले जाया गया वहाँ भी एक लकड़ी की सेज तैयार है जिस पर उसे लिटा दिया गया है ऊपर से लकड़ियाँ रख कर पतिदेव के हाथ से उनमे आग लगा दी गई लकडियाँ धूं धूं कर जल उठीं, बेटे माँ को जलता देख तड़प उठे, सुरो कराह उठी ..आह्ह !!! आखिर इन्होने ने मुझे राख मे तब्दील कर ही दिया, मेरा पूरा जीवन
होम हो गया !


अचानक गर्मी से पूरा शरीर तपने लगा रोम छिद्रों से पसीने की बूंदे रिसने लगीं और सुरो की आँख खुल गई | लाइट चली गई थी पंखा बंद होने की वजह से नींद टूट गई, सुरो भौचक्की हो अपने आस-पास देख रही थी, समझने की कोशिश कर रही थी कि वो स्वप्न देख रही थी या सच मे वो जीवित नही है | वो अपने अन्दर कुछ कमजोरी सी महसूस कर रही थी, उसने  बहू को आवाज दे कर पानी माँगा ये देखने के लिए जी वो जिन्दा है भी कि नही | बहू पानी ले आई, सुरो ने बहू को अपने सीने से लगा लिया बहू चौंक पड़ी क्या हुआ मम्मी जी ? सुरो की आँखों से आँसू निकल पड़े अपनी अंतिम यात्रा से वापस आ रही हूँ | बहू उनका मुंह देखने लगी, सुरो ने आँसू आँचल में समेट लिया | 

मीना पाठक
कानपुर-उत्तर प्रदेश    

Tuesday, October 28, 2014

सूर्योपासना का महापर्व है छठ

हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष दोनों मिल कर मनाते हैं। छठ व्रतके संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमें से एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्यने ही की थी। यह पर्व चार दिनों का होता है ।
भैयादूज के तीसरे दिन नहाये खाए से यह आरंभ होता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में व्रती को दिया जाता है । अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है इसे खरना कहते है । इस दिन रात में गन्ने के रस की बखीर बनती है। व्रतधारी पूरे दिन व्रत रखने के बाद रात में देवकुरी के पास भोग लगाने के बाद यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ,जिसे टिकरी या खजूर भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू बनाये जाते हैं। प्रसाद बनाते हुए सभी महिलाएँ छठ मईया के गीत गाती हैं |
निर्धन जानेला ई धनवान जानेला,
महिमा छठ मईया के अपार ई जहां जानेला ||

हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी.........आदि

इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया मौसम के सभी फल जैसे - सेव, केला, नाशपाती,शरीफा,अदरक,मूली,कच्ची हल्दी, नारियल,सुथनी आदि भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी कर बाँस की टोकरी (दौरा)में नयी साड़ी या पीला कपड़ा बिछा कर उसमे ठेकुआ, फल, ऐपन,सभी प्रकार के प्रसाद  और अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, व्रती के साथ बड़ी श्रद्धाभाव से दौरा सिर पर रख कर परिवार तथा पड़ोस के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर गीत गाते हुए चल देते हैं।
*काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय |
बात जे पुछेलें बटोहिया, बहँगी केकरा के जाय ?
तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय...*
सभी छठव्रती एक तालाब या नदी किनारे इकट्ठा हो कर नदी या तालाब की मिट्टी से बनायी गई छठ मईया की पिंडी पर ऐपन, लगा कर पीले सिन्दूर से टिकती हैं फिर दिया जला कर सभी फल, फूल, ठेकुआ आदि समर्पित करती हैं और गीत गाती हैं --
*सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार....*
फिर व्रती घुटनों तक जल में खड़े हो कर सामूहिक रूप से छठी मैया की प्रसाद भरे सूप को ले पूजा कर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। जो लोग भीड़ के डर से घाट पर नही जाना चाहते वो अपने घर में ही कृत्रिम तालाब का निर्माण करते हैं और उसी को घाट मान उसमे खड़े हो कर सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देते  हैं | नदी या तालाब के जल में दीपदान भी किया जाता है। इस दौरान कुछ घंटों के लिए घाटों पर मेले सा दृश्य बन जाता है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को अलभोर में ही व्रती उसी नदी या पोखर में घुटनों तक जल में खड़े हो कर सूर्य देव के उदय होने की प्रतीक्षा करते हुए गीत गाती हैं --
निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे...
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर...
और पहली किरण के साथ उदित होते ही सूर्य को अर्घ दिया जाता है। फिर सभी सुहागनों की मांग बहोरी जाती है । अंत में व्रती कच्चे दूध का सरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।*
छठ पूजा में कोसी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मइया से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोसी  भरी जाती है या जब घर में नयी बहू या पुत्र का जन्म होता है तब भी कोसी भरने की परम्परा है | इसके लिए छठ पूजन के साथ-साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी की कोसी (बड़ा घड़ा) जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोसी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि छठ मइया को कोसी कितनी प्यारी है।
रात छठिया मईया गवनै अईली                                                                  
आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली
बिलम्बली बिलम्बली कवन राम के अंगना
जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां,
जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा
उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां*
इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे घाटों पर पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।
छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है | मारीशस में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है कलकत्ता,चेन्नई,मुम्बई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है | प्रशासन को इसके लिए विशेष प्रबंध करने पड़ते हैं | वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की पूजा या जल देना लाभदायक माना जाता है |वैसे तो रोज ही मंत्रोच्चारण के साथ लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं पर इस पूजा का विशेष महत्व है | इस पूजा में व्रतियों को कठिन साधना से गुजरना पड़ता है |

सभी को छठ महा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ..जय छठी माई की ..

Friday, October 3, 2014

तब होगी बुराई पर अच्छाई की विजय




दशहरा, विजयदशमी या आयुध-पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है।
भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे। इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी 'विजयादशमी' कहते हैं। है। यह भारत का 'राष्ट्रीय त्योहार' है। रामलीला में जगहजगह रावण वध का प्रदर्शन होता है। क्षत्रियों के यहाँ शस्त्र की पूजा होती है। इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है।
देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है| हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूम धाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं।
पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं, व मैदानों में मेले लगते हैं।बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय ना मानकर, लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं। बंगाल,ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है।पूरे बंगाल में यह त्यौहार पांच दिनों के लिए मनाया जाता है।ओडिशा और असम मे चार दिन तक त्योहार चलता है। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके बाद सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा जी की पूजा होती हैं। अष्टमी के दिन महापूजा और बलि भी दी जाती है। दशमी के दिन विशेष पूजा होती है। प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं। इसके साथ ही वे एक दूसरे को भी सिंदूर लगाती हैं, व सिंदूर से खेलती हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके बाद देवी प्रतिमाओं विसर्जित कर दिया जाता है |
तमिलनाडु
, आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता है। कर्नाटक में मैसूर का दशहरा विशेष उल्लेखनीय है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का श्रींगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है। इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन नहीं किया जाता। गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं।
महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सभी बड़े सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं। यह मंदिर एक झील के बीचोबीच बना हुआ है। कहते हैं कि जब भी कोई घोर विपत्ति आने वाली होती है इस झील का पानी कला हो जाता है |
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है |
इस दिन के शुभ कृत्य हैं- अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन (अपने राज्य या ग्राम की सीमा को लाँघना), घर को पुन: लौट आना एवं घर की स्त्रियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमवाना, नये वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण करना, राजाओं के द्वारा घोड़ों, हाथियों एवं सैनिकों का नीराजन तथा परिक्रमणा करना। दशहरा या विजयादशमी सभी जातियों के लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण दिन है |
इस दिन
 राम ने रावण का वध किया था। रावण श्री राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन रावण का वध किया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाथ  के पुतले खुली जगह में जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू-धू कर जलने लगता है | यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
एक रावण का अंत करने के लिए स्वयं भगवान को पृथ्वी पर आना पड़ा था आज तो ना जाने कितने रावणों के बोझ से ये धरा व्याकुल है, ना जाने कितनी सिताएं कैद में कराह रही हैं, कितनी नग्न कर क्षत-विक्षत कर दी जा रही हैं, वृक्षों की डालों पर लटका दी जा रही हैं, तेज़ाब से झुलसा दी जा रही हैं और कितनी सारी गर्भ में ही मार दी जा रही हैं | आइये इस दशहरे को संकल्प लें कि इस रावण दहन के साथ ही हम अपने भीतर के आसुरी प्रवृत्तियों का भी दहन कर के इस धरा को बोझ मुक्त करेंगे, कागज का रावण नही अपने भीतर के रावण का दहन करना होगा तब सही मायने में यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होगा |

मीना पाठक
कानपुर-उत्तरप्रदेश





Monday, September 15, 2014

एक रचनाकार की मौत



जब से कामिनी को लिखने का शौक चढ़ा वो हमेशा कुछ ना कुछ सोचती रहती हर कहीं उसे कोई कविता या कहानी नजर आने लगी थी | अकेली हो या कोई काम कर रही हो उसका दिमाग कुछ ना कुछ ताने बाने बुनता रहता | रसोई में भी कलम छुपा कर साथ रखती | जब भी कुछ मन में आता वो किसी भी रद्दी कागज पर लिख लिया करती फिर काम खत्म कर के अपने लेपटॉप पर लिखती | इसका उसे लाभ भी हुआ उसकी कलम ने कई कविताएँ और कहानियाँ उगलीं जो पसन्द की गयीं और पत्रिकाओं में भी छपी | धीरे-धीरे वो अपनी पहचान बना रही थी | पर ये सब उसके पति को बिल्कुल पसन्द नही था | यूँ उसका खोये रहना उसके पति को जरा भी नही भाता था | पति को लग रहा था कि वो उसके हिस्से का समय अपने शौक पूरे करने में लगा रही है | वो हर बार उसे उलाहने देते कि
कहाँ खोई रहती हो ? क्या सोचती रहती हो ? किसके बारे में सोचती हो ? कामिनी हर बार कुछ ना कुछ बहाना बना देती |
कामिनी का लिखना और छपना उन्हें तनिक भी नहीं सुहा रहा था | घर का माहौल दिन पर दिन बिगड़ रहा था पर कामिनी अपनी कलम के बिना अब नही रह सकती थी | उसका कहना था कि वो सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए लिखती है न कि अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर पर उसके पति को मंजूर नही था वो किसी भी साम-दाम-दण्ड-भेद से उसे आगे बढ़ने से रोकना चाहता था वैसे तो कई बार कामिनी ने अपनी कविताएं और कहानियाँ पति को पढ़वा कर पति से थोड़ी वाहवाही लूटनी चाही पर हर बार उसे
अभी समय नही है कह कर टाल दिया जाता था |
उस दिन जब वो खाना ले कर पति के पास गई तो गोली की तरह एक प्रश्न दाग दिया गया
ये राकेश कौन है ?
कौन राकेश वो चौंक कर बोली |
वही जो तुम्हारी प्रेम कहानी का नायक है, जरूर उससे तुम्हारा शादी से पहले कोई संबंध था जिसको तुमने कहानी का रूप दे दिया है | जहर उगलते हुए उसके पति ने कहा |
कामिनी के पाँव तले जमीन खिसक गई वो कहानी तो मात्र कल्पना थी | उसके पति उससे ऐसा प्रश्न करेंगे ? उसने तो सपने में भी नही सोचा था, वो क्रोध और अपमान से थर-थर काँपने लगी | अपने कमरे में जा कर फूट-फूट कर रो पड़ी | जिसके साथ जीवन का एक बड़ा हिस्सा जिया हो वही आज ऐसा ओछा प्रश्न करेगें ...??
आँसूओं के सैलाब ने सारे शब्दों को बहा कर समंदर में डुबो दिया..वो निराशा से घिर गई उसे लगा अब जीवन में कुछ नही रखा है ..वो ये सब किस लिए कर रही है... उसे खुद के लिए जीने का क्या हक है..वो तो रोटी और कपड़े के बदले बिक चुकी है..वो अपनी इच्छाओं का गला घोंट देगी...अब कभी नही लिखेगी वो ...उसने लैपटॉप ऑन किया और अपनी सारी कहानियाँ और कविताएँ डीलीट कर दी..जिसमे उसकी आत्मा बसती थी..जिनको हर समय वो जीती थी...जो उसकी साँसों में थी...उसकी धड़कन थीं...जिसके बिना वो जीवित नही रह सकती थी.. हाँ...आज अपनी रचनाओं के साथ वो भी मर गई थी..एक रचनाकार की मौत हो गई थी...|



मीना पाठक

 

Thursday, August 14, 2014

स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ

कहने को तो हम १५ अगस्त १९४७ को आजाद हो चुके हैं | हम बड़े धूम धाम से ये दिन मानते हैं इस दिन हम सभी देशभक्त वीर सुपुतों को याद करते हैं |
कहते हैं जिस शक्तिशाली साम्राज्य का सूरज कभी नही डूबता था वो निहत्थे भारतीयों के सामने झुक गये और १५ अगस्त १९५७ के दिन गुलामी की काली  रात समाप्त हुई और हमें आजादी मिली |
सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद ने क्रांति की आग फैलाई और अपने प्राणों की आहुति दी। तत्पश्चात सरदार वल्लभभाई पटेल, गांधीजी, सत्य, अहिंसा और बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी | सत्याग्रह आंदोलन किए, लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया | इस दिन इन सब को हम श्रद्धांजलि देते हैं, इनका आभार प्रकट करते हैं और अपने कर्तव्यों से इति श्री कर लेते हैं फिर वर्ष भर इनकी मूर्तियों पर कौवे बैठें या चील हमें क्या ? पर जिस भारत के लिए इन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगायी क्या हम वो भारत उन्हें दे पाए हैं ?
आज जिस कदर देश में भ्रष्टाचार फैला है, अपने ही अपने देश को लूट कर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं, विदेशी बैंकों में उनके खजाने भरते जा रहे हैं, गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होता जा रहा है | अमीरी-गरीबी की खायी बढ़ती ही जा रही है, क्या इसे कभी पाटा जा सकता है ? स्त्रियों की सुरक्षा हो या कन्या भ्रूण हत्या या आये दिन उन पर अनेकों तरह से किये जा रहे जुल्मों को आज तक खत्म किया जा सका है ? अंग्रेज तो विदेशी थे, पराये थे इस लिए हम पर जुल्म करते थे आज तो हम आजाद हैं और सब अपने, फिर ये जुल्म क्यूँ ? स्त्रियों पर इतने अत्याचार होते हैं, उनकी हत्या से ले कर बलात्कार तक पर जिन्हें अपराधियों को दण्ड दिलाना है वही लीपा पोती कर उन्हें बचा ले जाते हैं | यही आजादी है ?
 आये दिन साम्प्रदायिक दंगे-फसाद....इससे राजनेताओं को तो लाभ होता है पर आम जनता सजा भुगतती है | इसका जिम्मेदार कौन हैं ? और भी बहुत सी समस्याएं हैं किस-किस का जिक्र करूँ |

युवक देश की रीढ़ की हड्डी के समान है | उन्हें देश का गौरव बनाए रखने के लिए तथा इसे संपन्न एवं शक्तिशाली बनाने में अपना योगदान देना चाहिए | राष्ट्र की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि वो सांप्रदायिकता के विष से सर्वथा दूर रहें |
घूस, जमाखोरी, कालाबाजारी को देश से समाप्त करें | भारत के नागरिक होने के नाते स्वतंत्रता का न तो स्वयं दुरुपयोग करें और न दूसरों को करने दें| एकता की भावना से रहें और अलगाव, आंतरिक कलह से बचें |
हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस का बड़ा महत्व है | हमें अच्‍छे कार्य करना है और देश को आगे बढ़ाना है |
दुःख की बात है कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भरत अपने सपने को साकार नही कर सका है इसका कारण वैयक्तिक स्वार्थ कहा जा सकता है या दलबंदी भी एक कारण हो सकता है | एक बात और सरकार के साथ नागरिकों को भी देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद रखना होगा |


आईये ये संकल्प लें कि जिन शहीदों के प्रति श्रद्धा से मस्तक अपने आप ही झुक जाता है जिन्होंने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपने प्राणों की आहु‍ति दे कर हमें स्वतंत्रता दिलाई हम उस स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे | देश का नाम विश्व में रोशन हो, ऐसा कार्य करेंगें, देश की प्रगति के साधक बनेगें न‍ कि बाधक |
अमर शहीदों को नमन
जय हिन्द
||सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ||

मीना पाठक

Sunday, August 10, 2014

पापा बिन !!

नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
 तब भर आता है दिल मेरा
पापा की कमी रुलाती है ।
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया ।
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था ।
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया ।
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का करतीं हूँ मन को
सज जाती है होठो पर
यादों की पीर
नैनो  से आज फिर छलक आयी
बहती सी नीर
जीवन का रंग कितना
बदल जाता है ।
पापा बिन सावन का
इक तीज-त्यौहार न भाता है ||

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...